झारखंड की जमीन अन्य राज्यों की तुलना में सस्ती क्यों है?

  झारखंड की जमीन अन्य राज्यों की तुलना में सस्ती क्यों है?*
 *परिचय*
भारत के विभिन्न राज्यों में जमीन की कीमतें कई कारकों पर निर्भर करती हैं, जैसे कि आर्थिक विकास, औद्योगीकरण, बुनियादी ढांचा, सरकारी नीतियाँ, मांग और आपूर्ति आदि। झारखंड भारत का एक ऐसा राज्य है जहाँ जमीन की कीमतें अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम हैं। इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें राज्य की आर्थिक स्थिति, औद्योगिक विकास की धीमी गति, प्रवासन, कानून-व्यवस्था और भूमि संबंधी नीतियाँ शामिल हैं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि झारखंड की जमीन अन्य राज्यों की तुलना में सस्ती क्यों है।
1. आर्थिक पिछड़ापन और औद्योगिक विकास की कमी
झारखंड भारत के सबसे संपन्न राज्यों में से एक है जब प्राकृतिक संसाधनों की बात आती है, लेकिन आर्थिक रूप से यह अभी भी पिछड़ा हुआ है। यहाँ खनिज संपदा, जंगल और जल संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं, लेकिन इनका सही उपयोग नहीं हो पा रहा है।
औद्योगीकरण की धीमी गति:* झारखंड में बड़े उद्योगों की कमी है। हालाँकि यहाँ कोयला, लोहा, तांबा और अन्य खनिजों का भंडार है, लेकिन उद्योगों का विकास नहीं हो पाया है। इस वजह से रोजगार के अवसर कम हैं और लोग दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं।
निवेश की कमी:* राज्य में बाहरी निवेशकों का आना कम है, जिससे जमीन की मांग कम रहती है और कीमतें स्थिर या कम बनी रहती हैं।
इस कारण से, झारखंड की जमीन की कीमतें महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु या कर्नाटक जैसे औद्योगिक रूप से विकसित राज्यों की तुलना में काफी कम हैं।
2. कमजोर बुनियादी ढाँचा
किसी भी राज्य में जमीन की कीमतें वहाँ के बुनियादी ढाँचे पर निर्भर करती हैं। झारखंड में अभी भी सड़क, रेलवे, बिजली और पानी की सुविधाएँ अपर्याप्त हैं।
यातायात की सुविधा का अभाव:* राज्य के कई हिस्सों में सड़कें खराब हैं और रेलवे नेटवर्क भी पूरी तरह विकसित नहीं है। इससे व्यापार और उद्योगों को बढ़ावा नहीं मिल पाता।
बिजली और पानी की समस्या:* झारखंड में बिजली कटौती और पानी की कमी एक बड़ी समस्या है, जिससे उद्योग लगाने में दिक्कतें आती हैं।
इन कारणों से, झारखंड की जमीन की मांग कम रहती है और कीमतें भी अन्य राज्यों के मुकाबले कम होती हैं।
3. जनसंख्या घनत्व कम होना
झारखंड की जनसंख्या घनत्व भारत के अन्य राज्यों की तुलना में कम है। जहाँ बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में जनसंख्या दबाव अधिक है, वहीं झारखंड में जमीन की उपलब्धता अधिक है।
शहरीकरण की धीमी गति:* राज्य में बड़े शहरों की संख्या कम है। रांची, जमशेदपुर और धनबाद जैसे शहरों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में शहरी विकास धीमा है।
ग्रामीण प्रवास कम: अन्य राज्यों की तुलना में यहाँ ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन कम है, जिससे शहरी जमीन की मांग कम रहती है।
इस वजह से, झारखंड में जमीन की कीमतें कम बनी हुई हैं।
4. भूमि संबंधी कानून और सरकारी नीतियाँ
झारखंड में भूमि अधिग्रहण और जमीन के हस्तांतरण से जुड़े कानून काफी सख्त हैं, जिससे बाहरी निवेशकों और खरीदारों को दिक्कत होती है।
आदिवासी भूमि का संरक्षण: झारखंड में बड़े हिस्से में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं, और उनकी जमीन को सरकार ने संरक्षित किया हुआ है। इस जमीन को गैर-आदिवासियों को बेचने पर प्रतिबंध है।
भूमि अधिग्रहण में बाधाएँ: सरकारी परियोजनाओं के लिए भी भूमि अधिग्रहण में विरोध और कानूनी अड़चनें आती हैं, जिससे औद्योगिक विकास प्रभावित होता है।
इन सख्त नीतियों के कारण, झारखंड में जमीन की खरीद-बिक्री में दिक्कतें आती हैं और इसका असर जमीन की कीमतों पर पड़ता है।
5. कानून-व्यवस्था और नक्सल समस्या
झारखंड के कुछ हिस्सों में नक्सलवाद की समस्या बनी हुई है, जिससे राज्य में सुरक्षा की स्थिति प्रभावित होती है।
निवेशकों का डर: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में व्यापारियों और निवेशकों का आना कम होता है, जिससे वहाँ की जमीन की मांग घट जाती है।
विकास कार्यों में बाधा: नक्सल समस्या के कारण सड़क, बिजली और अन्य विकास कार्यों में रुकावट आती है, जिससे जमीन की कीमतें प्रभावित होती हैं।
इस वजह से, झारखंड के कुछ इलाकों में जमीन की कीमतें बेहद कम हैं।
6. कृषि पर निर्भरता और गैर-उपजाऊ भूमि
झारखंड की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है, लेकिन यहाँ की जमीन की गुणवत्ता अन्य राज्यों की तुलना में कमजोर है।
पहाड़ी और जंगली क्षेत्र: राज्य का बड़ा हिस्सा पहाड़ी और जंगली है, जिसे कृषि या निर्माण के लिए उपयोग करना मुश्किल होता है।
सिंचाई की कमी: यहाँ सिंचाई की सुविधाएँ कम हैं, जिससे किसानों को फसल उगाने में दिक्कत होती है और जमीन की उत्पादकता कम रहती है।
इस कारण से, झारखंड की जमीन की कीमतें अन्य उपजाऊ राज्यों (जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश) की तुलना में कम हैं
7. राज्य की राजनीतिक अस्थिरता
झारखंड में अक्सर सरकारें बदलती रहती हैं, जिससे दीर्घकालिक विकास योजनाएँ प्रभावित होती हैं।
नीतिगत अनिश्चितता: हर नई सरकार अपनी अलग नीतियाँ लाती है, जिससे निवेशकों का भरोसा कम होता है।
विकास कार्यों में देरी: राजनीतिक अस्थिरता के कारण बुनियादी ढाँचे और औद्योगिक विकास की योजनाएँ धीमी हो जाती हैं।
इस वजह से, झारखंड में जमीन की मांग कम बनी रहती है और कीमतें भी कम रहती हैं।
निष्कर्ष
झारखंड की जमीन की कीमतें अन्य राज्यों की तुलना में कम होने के पीछे कई कारण हैं, जैसे कि आर्थिक पिछड़ापन, औद्योगीकरण की कमी, कमजोर बुनियादी ढाँचा, सख्त भूमि नीतियाँ, नक्सल समस्या और राजनीतिक अस्थिरता। हालाँकि, राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की भरपूर उपलब्धता है, और अगर सही नीतियाँ बनाई जाएँ तो झारखंड की जमीन की कीमतें भविष्य में बढ़ सकती हैं।
फिलहाल, यदि कोई सस्ती जमीन खरीदने की सोच रहा है, तो झारखंड एक अच्छा विकल्प हो सकता है, लेकिन निवेश से पहले स्थानीय कानूनों और विकास की संभावनाओं को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top